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introvert writer (JOURNALIST)
बस एक आपको ही पाया था मैंने, अब सब-कुछ अपना मैं खो चुकी हूँ। हिसाब लगाऊँ तो उम्र कम पड़ेगी, इन चंद दिनों में इतना रो चुकी हूँ।। #रूपकीबातें
कभी-कभी सोचती हूँ सबसे हिसाब कर लूँ, जाने कितने भावों को उधार लेकर बैठी हूँ। ना जाने कितना प्रेम, स्नेह वापस दे नहीं पाती। केवल लेती हूँ मैं भावनाओं को, मुझे लौटाना नहीं आता उसी हिसाब से उतना ही प्रेम, उतना ही स्नेह। कभी सोचती हूँ बहुत दूर चली जाऊँ, जहाँ कोई नहीं हो, केवल मैं रहूँ। और इस "मैं" में अन्तर्मन ना रहे, मैं भावहीन रहूँ। जहाँ से शून्य की खोज हुई है, वहाँ जाना चाहती हूँ। जानना है मुझको शून्य, "शून्य" होकर भी मूल्यवान क्यों है। इसलिए ही भावहीन हो शून्य होना चाहती हूँ, शायद शून्य होकर समझ सकूँ मूल्य अपना। जानना चाहती हूँ विनाश क्या है? अंत क्या है? जीवन का महत्व क्यों है? कभी सोचती हूँ कि मेरी मृत्यु का शोक कितना होगा? होगा भी या नहीं! क्या सच में दुःख होगा? या केवल नियम रहेगा सृष्टि का। आँसू मेरे ना होने पर मेरे दुःख में बहेंगे। या केवल इसलिए कि रोया जाता है शोक में। दुःख होगा या केवल दुःखी दिखने के लिए ही दुःखी होंगे। रोकना चाहती हूँ उस वक़्त, भागती हुई समय की घड़ी को। शायद तब देख सकूँ.. मैं कौन हूँ सभी के लिए। घड़ी के चलते ही मेरा अंत होगा या बाकी रहूँगी अन्तर्मन में। चाहत तो यह भी है कि आ सकूँ वापस देखने, सूखी हुई आँखों में खलती मेरी कमी को भरने। #रूपकीबातें
सारी उम्र लगा दी सिखाने में, "थोड़ा सुन लिया करो", "बर्दाश्त करना सीखो", 'तुम नज़रअंदाज किया करो".. और फिर उसके चुपचाप सहते रहने पर कहना.. "कैसे सह लिया इतना सब" "हमें तो बता देते"..। आप बच्चों को संस्कार में ग़लत और सही का फ़र्क तो सिखाते हैं लेकिन उन्हें उस ग़लत के विरोध में बोलना भी सिखाइये। किसी भी रिश्ते को बनाए रखने के लिए, आज की खामोशी, उसे हमेशा ग़लत के आगे खामोश कर देगी। #रूपकीबातें
सुनो, जानते हो मेरा एक बहुत छोटा ख़्वाब है.. तुम हो, मैं हूं और हमारा बहुत ख़ूबसूरत फूलों से भरा एक आशियाना.. चाहती हूँ.. किसी रोज हम मिलें। तुम बातें करो, और मैं तुम्हें एकटक देखती रहूँ.. की तुम कितनी बातें करते हो। किसी रोज चाँद की रोशनी में, तारों के नीचे, कॉफी के प्याले पकड़े हम अपनी बचपन से लेकर अब तक की सारी बातें, किस्से, घटनाएं बताएं.. कभी मैं, कभी तुम सब कुछ बताओ.. और इस तरह एक दूसरे को और करीब से जानें। घर के किसी भी कोने या हिस्से में तुम बैठो जब, तो मैं भी साथ में बैठे सकूं, तुम्हारे काँधे पर सर रखे, तुम्हें महसूस करूं, तुम्हारी मौजूदगी को, तुम्हारे साथ को जीना है मुझे। उस चारदीवारी में पूरे अधिकार से तुम्हारे साथ रहूँ और जब चाहूँ तुम्हारे हाथों को थाम सकूँ। कहीं आईने के आगे बिखरा पड़ा हो मेरा सामान। अलमारी में हर तरफ तुम्हारे सामानों के बीच मेरा भी कुछ सामान हो। घर के परदे मेरी पसंद के और दीवारों पर तुम्हारी पसन्द का रंग हो। कहीं कुछ बिखरा भी हो , तो उस बिखरेपन में कुछ तुम बसे हो और कुछ मैं भी। कोई डर नहीं, रोक-टोक नहीं। केवल प्यार, विश्वास और अधिकार हो। तुम में मुझे दिखे मेरा ही अक्स कहीं, और मुझमें भी कुछ तुम्हारी झलक हो। सबको खबर हो तुम सिर्फ मेरे हो, और मैं बस तुम्हारी। जैसे तुम मेरी पहचान बनो, और मैं तुम्हारी पहचान। #सुनो #रूपकीबातें
सुनो...., थोड़ी देर मेरा हाथ थाम लोगे क्या.. वो आज पहली दफ़ा तुम्हें किसी और के साथ देखा, तो धड़कनें बढ़ गई मेरी.. एक अजीब सी बैचेनी हो रही है.. आज तुम संभाल लो मुझे, फिर उम्र भर के लिए मैं खुद को संभाल लूंगी।। #रूपकीबातें
तुझे खोने का ख़ौफ़ मुझे रोज सताता है, लगता है जैसे दिल बिछड़ जाए ना तुझसे। फ़िक्र ये नहीं कि कोई अपना बना लेगा तुझको, ख़ौफ़ज़दा हूँ कहीं तू छिन जाए ना मुझसे।। #रूपकीबातें
बेवफ़ाई को एक नाम देना चाहती थी, मगर तुमसे बेहतर दूसरा कोई नाम नहीं। आज भी लोग मुझे तेरी ही समझते हैं, सच पूछो तो हम जैसा कोई बदनाम नहीं।। #रूपकीबातें
और फिर हम आज उन्हें देख कर थम गए, किसी को क्या ख़बर की हम हर रात रोते हैं। महसूस नहीं होता दूर से दर्द किसी का, फ़ासलों में तो सब बड़े चैन से सोते हैं।। #रूपकीबातें
मुझमें रोने का सलीका बहुत है, मगर आँसूओं ने तमीज़ नहीं सीखी। #रूपकीबातें
एक खामोश युद्ध चल रहा है दिल और दिमाग़ के बीच.. एक तुम्हारा अतीत जी रहा है, और एक तुम्हारा वर्तमान। #रूपकीबातें
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